सुबह की नमाज़ की एहमियत
*सरकारे दोआलम सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम का इरशाद है के*
1. नमाज़े सुबह दुन्या और दुन्यामे जो कुछभी है उन सबसे बेहतर है.
*(हवाला:- मुस्लिम शरीफ / तिर्मिज़ी शरीफ)*
2. नमाज़े सुबह पढ़नेका पक्का इरादा करलो क्यों के फज़रकी नमाज़मे बेहिसाब फ़ज़ीलत और बेसुमार बरकत है. *(हवाला:- तिब्रानी शरीफ)*
3. नमाज़े सुबह की दो सुन्नत नमाज़ कभी ना छोडो, फिर भले ही दुश्मनोने तुम्हे चारो तरफसे घेर लिया हो यानेकी चाहे तुम कितनीभी मुसीबतमे हो.
*(हवाला:- अबूदावूद शरीफ)*
4. मेरी उम्मत तब तक दीने हक़ पर रहेगी जब तक नमाज़े फज़र थोड़ा अँधेरा और थोड़ा उजालेके दरमियान पढ़ती रहेगी. *(हवाला:- तिब्रानी शरीफ)*
5. नमाज़े फज़रकी सुन्नतो की पहेली रकतमे “सुर-ऐ-काफेरून” (कुल- या-अईयोहाल-काफेरून) और दूसरी रकतमे “सुर-ऐ-इख्लास” (कुल-होवल-लाहो-अहद) पढ़ना सुन्नत है.
*(हवाला:- गुन्या/शरहे गुन्या)*
6. और किसीभी फ़र्ज़ नमाज़की जमात खड़ी हो चुकी हो तो फिर सुन्नत नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं है, मगर नमाज़े फज़रकी सुन्नत पढ़नेका हुकम यह है के अगर यकीन हो के सुन्नत नमाज़ पढ़कर जमात मिल जाएगी तो फिर सुन्नत पढ़ली जाऐ. चाहे फिर काएदे में पहोचो. *(हवाला:- बहारे शरीयत / फतावा-ऐ-रज़वियाह, जिल्द-३, पेज-६२०)*
7. नमाज़े फज़रकी सुन्नत नमाज़ छूट जाए तो सूरज तुलुअ होनेके २० मिनिट बाद पढ़ी जाए. नमाज़े फज़र क़ज़ा हो जाए तो जव्वालके वकत से पहले पहले सुन्नत और फ़र्ज़ दोनोंकी क़ज़ा पढ़ी जाए और अगर वकत निकल जाए तो सिर्फ फर्जकी क़ज़ा पढ़ी जाए.
*(हवाला:-फतावा-ऐ-रज़वियाह, जिल्द-३, पेज-620)*
8. फज़रकी नमाज़ के बाद तुलूए आफताब से २० मिनिट के दरमियान कोईभी नमाज़ (फ़र्ज़, सुन्नत, नवाफिल या कज़ा नमाज़) पढ़ना जायज़ नही. तुलूए आफताब के वकत तिलावते कुर्रान करना मकरूह है.
*(हवाला:- बहारे शरीयत, दुर्रे मुख़्तार, फतावा-ऐ-रज़वियाह, जिल्द-३, पेज-714)*
9. तुलूए फजर (सुबह सादिक) से तुलूए आफताब के दरमियान ज़िक्रे-इलाही के अलावा तमाम दुनयावी काम करना मकरूह बताया गया है. इस दौरान तिलावते कुर्राने पाक करना मकरूह है. सिर्फ ज़िक्रे इलाही और दुरुदे पाक पढ़ते रहना चाहिए.
*(हवाला:- दुर्रे मुख्तार)*
10. नमाज़े फज़रकी सुन्नत पढ़नेमे जमात छूट जानेका डर-अंदेशा हो तो सुन्नत नमाज़मे सिर्फ वोही अरकान अदा करे जो फ़र्ज़ और वाजिब है. मसलन सना, अऊज़ो, बिल्मिल्लाह वगैरे छोड़ दिया जाए, रुकूअ और सुजुदमे तस्बी एक-एक बार पढ़े, और सुन्नत नमाज़ पूरी कर के फ़ौरन जमातमे शामिल हो जाए.
*(हवाला:- बहारे शरीयत, रुदुल मोहतार)*
11. जो बंदा फज़रकी नमाज़ आखरी वकतमें पढ़ेगा तो अल्लाह अज़वजल उसकी कब्र रोशन और मुनव्वर फरमाएगा और उसकी नमाज़ काबिले कुबूल होगी.
*(हवाला:-दयालमी)*
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