Qabrastan me hazri ke aadab

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        *QABARSTAN ME*
       *HAZRI KE AADAB*
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     जो कब्रस्तान में दाखिल हो कर ये कहे : अय अल्लाह ! अय गल जाने वाले जिस्मो और बोसीदा हड्डियों के रब ! जो दुन्या से ईमान की हालत में रुखसत हुए तू उन पर अपनी रहमत और मेरा सलाम पहोचा दे। तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से ले कर इस वक़्त तक जितने मोमिन फौत हुए सब उस दुआ पढ़ने वाले के लिये दुआए मग्फिरत करेंगे।

     हुज़ूर ﷺ का फरमाने शफ़ाअत निशान है : जो शख्स कब्रस्तान में दाखिल हुवा फिर उस ने सूरतुल फातिहा, सूरतुल इखलास और सुरतुत्तकासुर पढ़ी फिर ये दुआ मांगी : या अल्लाह ! मेने जो कुछ कुरआन पढ़ा उसका षवाब इस कब्रस्तान के मोमिन मर्दों और मोमिन औरतो को पहोचा। तो वो तमाम मोमिन क़यामत के रोज़ उस इसाले षवाब करने वाले के सिफारिशी होंगे।
*✍शरहु स्सुदुर् स.311*

     हदीशे पाक में है : जो 11 बार सूरतुल इखलास पढ़ कर इसका षवाब मुर्दो को पहोचाए, तो मुर्दो की गिनती के बराबर उस इसाले षवाब करने वाले को षवाब मिलेगा।
*✍दुर्रे मुख्तार, जी.3 स.183*

     क़ब्र के ऊपर अगरबत्ती न जलाई जाए इस में बे अदबी और बद फाली है (और इस से मैयत को तकलीफ होती है), हा अगर हाज़रिन को खुशबु पोहचाने के लिये लगाना चाहे तो क़ब्र के पास खाली जगह हो वहा लगाए के खुशबु पहोचाना महबूब है।
*✍मूलख्खसन फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.9 स.482,525*

     आला हज़रत अलैरहमा एक और जगह फरमाते है : सहीह मुस्लिम शरीफ में हज़रते अम्र बिन आस से मरवी, उन्हों ने दमे मर्ग (यानि वक़्ते वफ़ात) अपने फ़रज़न्द से फ़रमाया : जब में मर जाउ तो मेरे साथ न कोई नौहा करने वाली जाए न आग जाए।
*✍सहीह मुस्लिम, स.70 हदिष:192*

     क़ब्र पर चराग या मोमबत्ती वग़ैरा न रखे के ये आग है, और क़ब्र पर आग रखने से मैय्यत को तकलीफ होती है,
*✍आक़ा का महीना, स.29*

     कई मज़ाराते औलिया पर देखा गया है के ज़ाऐरीन की सहूलत की खातिर मुसलमानो की क़ब्रे तोड़ फोड़ कर के फर्श बना दिया जाता है, ऐसे फर्श पर लेटना, चलना, खड़ा होना, तिलावत और ज़िकरो अज़कार के लिये बैठना वग़ैरा हराम है, दूर ही से फातिहा पढ़ लीजिये।

     ज़ियारते क़ब्र मय्यित के चेहरे के सामने खड़े हो कर, क़ब्र वाले की क़दमो की तरफ से जाए के उस की निगाह के सामने सिरहाने से न आए के उसे सर उठा कर देखना पड़े।
*✍फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.9 स.532*

     कब्रस्तान में इस तरह खड़े हो के किब्ले की तरफ पीठ और क़ब्र वालो के चेहरों की तरफ मुह हो इस के बाद कहिये...
     ऐ क़ब्र वालो ! तुम पर सलाम हो, अल्लाह हमारी और तुम्हारी मग्फिरत फरमाए, तुम हम से पहले आ गए और हम तुम्हारे बाद आने वाले है।
*✍फतावा आलमगिरी, जी.5 स.350*
*✍आक़ा का महीना, स.28*

     नबीये करीम صلى الله عليه وسلم का फरमाने अज़ीम है : मेने तुम को ज़ियारते कूबर से मना किया था, अब तुम क़ब्रो की ज़ियारत करो के वो दुन्या में बे रगबति का सबब है और आख़िरत की याद दिलाती है।
*✍सुनन इब्ने माजाह, जी.2 स.252 हदिष: 1571*

     वलियुल्लाह के मज़ार शरीफ या किसी भी मुसलमान की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहे तो मुस्तहब ये है के पहले अपने मकान पर गैर मकरूह वक़्त में 2 रकअत नफ्ल पढ़े, हर रकअत में सूरतुल फातिहा के बाद एक बार आयतुल कुरसी और 3 बार सूरए इखलास पढ़े और इस नमाज़ का षवाब साहिबे क़ब्र को पहोचाए, अल्लाह तआला उस फौत सुदा बन्दे की क़ब्र में नूर पैदा करेगा और इस षवाब पोहचाने वाले शख्स को बहुत ज़्यादा षवाब अता फरमाएगा।
*✍फतवा आलमगिरी, जी.5 स.350*

     मज़ार शरीफ या क़ब्र की ज़्यारत के लिये जाते हुए रस्ते में फ़ुज़ूल बातो में मशगूल न हो। कब्रस्तान में आप उस रस्ते से जाए, जहां माज़ी में कभी भी मुसलमानो की क़ब्रे न थी, जो रास्ता नया बना हुवा हो उस पर न चले, रद्दुल मुहतार में है कब्रस्तान में क़ब्रे पाट कर जो नया रास्ता निकाला गया हो उस पर चलना हराम है। बल्कि नऐ रस्ते का सिर्फ गुमान ग़ालिब हो तब भी उस पर चलना ना जाइज़ व गुनाह है।
*✍दुर्रे मुख्तार, जी.3 स.183*
*✍आक़ा  का महीना, स.27*
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